हर पल  चलें मंज़िल की  ओर मुमकिन तो नहीं

हर पल  चलें मंज़िल की  ओर मुमकिन तो नहीं
मोहब्बत  मिले उन  राहों  पर मुमकिन  तो नहीं

ग़म-ए-सहराओं  सा घिरा  हुआ है मेरा हर पल
खुशियां  मिले  बस  उम्र  भर  मुमकिन तो नहीं

ख्वाब   में   देखे  हैं  कई   खूबसूरत  मंजर मैंने
हक़ीक़त  हों   ख्वाब  सारे   मुमकिन  तो  नहीं

आइना  देख   चेहरा   नजर   आता   है  यूं  तो
हाल   अपना  बताये   मगर  मुमकिन  तो नहीं

बैठे कभी शजर तले लेके हाथों में हाथ उसका
देख उन्हें हम कुछ बोल पाये मुमकिन तो नहीं

Hindi Ghazal written by Neeraj Neeru

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