मैं भाई उस को कहती हूँ
मैं उस से लड़ती-झगड़ती हूँ
‘आगाज़-ए-सहर’ उसकी बातों से
‘शब का अंधेरा भी उसकी शरारतों से
हो जाती हूंँ बेज़ार मैं उस के कामों से
फिर भी पिटता है मुझे वह अपने हाथों से
मैं भाई उस को कहती हूँ
मैं उस से लड़ती-झगड़ती हूँ
वो हीरो ख़ुद को कहता है
हीरो जैसा ही संवरता है
ज़ुल्म वह मुझ पर करता है
और ‘पापा’ से भी डरता है
मैं भाई उस को कहती हूँ
मैं उस से लड़ती-झगड़ती हूँ
करता है नज़र-अंदाज़ मुझे, घर में मेरे
होता है बा-ख़बर हर शै से मेरे
नहीं होती हूंँ ‘ख़ौफ़ज़दाह अब मैं
मेरा भाई है जो साथ मेरे
मैं भाई उस को कहती हूँ
मैं उस से लड़ती-झगड़ती हूँ
Ghazal written by Sofiya Shaikh Srm beautiful Poem | read More Hindi Poetry