हम अपने लिए हर रोज़ सज़ा माँगेंगे
हो गुनहगार तो सिवा इसके क्या माँगेंगे
ज़िक्र उसकी ही दरियादिली का रहता है
हक़ में उस की खातिर फक्त दुआ माँगेंगे
अदाओं से उस की हम भी मुतासिर थे
अब तो महफिल में उस की ही सना माँगेंगे
हर पल की खबर उस की तु समेटे आना
उसकी रुददाद तुझसे ऐ बाद-ए-सबा माँगेंगे
अगर कोई ग़म-ए-दर्द कभी छाए उस पर
अपने रुखसार पर अश्कों की रिदा माँगेंगे
जिस के तसव्वुर से एहसास मेरे शर्माते हैं
हम उस हल्की सी मुस्कान में सदा माँगेंगे
चाह है मेरी , बिखरे कहीं पाक उल्फ़त ये
फिर उस खुशनसीब से हर्फ-ए-वफ़ा माँगेंगे
वो हमें माँगें या ना माँगें दुआओं में सोफ़ी
हम तो उस को ही तुझ से ऐ मेरे खुदा माँगेंगे
Ghazal is written by Sofiya Shaikh Srm beautiful Hindi Poetry.