नज़्म-ए-उल्फ़त

ये नज़्म आप के औसाफ़ को पहचानती है,
ये नज़्म आप के जलवों की चमक जनती है।

ये नज़्म आप के दस्त-ए-हिना से लाई है,
ये नज़्म आप के अंगुश्त की हिनाई है।
ये नज़्म आप के होंटों पे सजी जुंबिश है,
ये नज़्म आप की आराइश-ए-रानाई है।
ये नज़्म नाफ़-प्याले पे हो गई है फ़िदा,
ये नज़्म आप का दर्द-ए-शिकम बढ़ाई है।
ये नज़्म आप के गोरे बदन की है ख़ुशबू,
ये नज़्म आप की महकी हुई अंगड़ाई है।
ये नज़्म आप के काले हिजाब का टुकड़ा,
ये नज़्म आप के बुर्क़े की इक सिलाई है।
ये नज़्म आप की पर्दा-नशीली आँखे है,
ये नज़्म आप के पलकों की बा-हयाई है।
ये नज़्म आप के शहनाज़-ए-गोश का झुमका,
ये नज़्म आप के रुख़सार से शर्माई हैं।
ये नज़्म आप के हुस्न-ए-अदा से है रोशन,
ये नज़्म आप के शिरीन-ए-बा-अदाइ है।

ये नज़्म आप की ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म भी है,
ये नज़्म आप की गेसु-ए-मोहतरम भी है।
ये नज़्म आप के कासा-ए-चश्म का दीदा,
ये नज़्म आप के पर्दा-ए-चश्म-ए-नम भी है।
ये नज़्म आप के माथे पे लटका आँचल है,
ये नज़्म आप की अबरू-ए-तेग़-ओ-ख़म भी है।

नक़्शे-महबूब सोहेल’ दिल से नज़्म मे लिखा,
सर से पा तक का मो’जिज़ात नज़्म मे लिखा।
फिर भी औसाफ़-ए-इज़ाफ़ी को बयाँ कैसे करूँ?
आप के वस्फ़-ए-ज़ब्त-ए-राज़ अयाँ कैसे करूँ?

सोहेल-ए-नाचीज़-ओ-ख़स्ता की इतनी हसरत है,
बस आप कह दो मुकम्मल ये नज़्म-ए-उल्फ़त है।
बस आप कह दो मुकम्मल यह नज़्म-ए-उल्फ़त है।


Nazm by Shaikh Sohail

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