उसकी ज़ुल्फ़ें संवारने चला हूँ मैं

uski zulfen savaarane chala hu main

उसकी    ज़ुल्फ़ें    संवारने      चला     हूँ    मैं
खुद     को    उसपे     हारने    चला    हूँ    मैं

जाने   ये   कैसा   मंजर   है   मेरी   आँखों  में
बस   एक   उसी    को   देखने   चला   हूँ   मैं

उसकी  ज़ुल्फ़ें  उसकी  आँखें  देखी हैं  यूँ  तो
सो  आज   उसका  चेहरा   पढ़ने  चला  हूँ  मैं

मेरे  दिल  में  बसा  है जो  इक शख्स  कब से
एक बार  फिर उसे  अपना कहने  चला हूँ  मैं

वो बैठे हैं पास मेरे अपनी पलकों को झुकाये
आहिस्ता से  उन्हें  बाहों  में भरने  चला हूँ  मैं

उसने छुआ तो लगा फ़िज़ाओं में कोई बात है
नादां सा दिल लिये मोहब्बत करने चला हूँ मैं

ये  कैसी  खुशी ये  कैसा  सुकूं  है दोस्त  मुझे
पाकर  उसे  अपना  जहाँ  बनाने चला  हूँ  मैं


Hindi Poetry “uski zulfen savaarane chala hu main” written by Neeraj Neeru

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