ख़ामोश मकान में मेरे
रोशनी सियाह रहती है
टूटा भरोसा हो जिस पर
शक़ की निगाह रहती है
मारा है ग़म ने जिस को भी
दिल में तो आह रहती है
ख़्वाब फ़िर से सारे पूरे हो
हर बार नई चाह रहती है
आस्तीन के डसने वालों की
चारों ओर से वाह रहती है
सियासी शरीफों की यहाँ
अलैदाह बारगाह रहती है
Ghazal written by Sofiya Shaikh Srm beautiful Poem | read More Hindi Poetry